खाने के शौकीनों के लिए दिल्ली और लखनऊ दोनों ही प्रसिद्ध जगहें हैं । दोनों शहरों में दूरी होते हुए भी ये स्वाद के मामले में एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। दिल्ली अपने पंजाबी व्यंजनों का शानदार मेल देती है, वहीं लखनऊ अपने कबाबों के लिए प्रसिद्ध है। इन दोनों के बीच का सफर ऐसे, जैसे सोने पे सुहागा ।
कुछ दिनों पहले मुझे दिल्ली से लखनऊ जाने का मौका मिला, तो मैंने इस यात्रा की योजना बनाली ।
लखनऊ कई रास्तों द्वारा जाया जा सकता है, लेकिन मैंने तय किया कि मैं रास्ते में मुगल नगरी आगरा धूमूँगा । नए बने ताजा यमुना एक्सप्रेसवे के रास्ते यह यात्रा लगभग ५३३ कि.मी. की है। हिंदी फिल्म पीकू में इस एक्सप्रेसवे को देखने के बाद, मुझे अपनी आंखों से देखने की इच्छा हुई ।
लखनऊ- नवाबों का शहर :- बचपन से लखनऊ के बारे में बहुत सुना था, इसलिए यहाँ जाने की इच्छा रखता था। उत्तम, शाही कोठियों के अलावा लखनऊ शानदार मुगलई खाने के लिए प्रसिद्ध है। उत्तर भारत की राजधानी में ढेरों प्राचीन जगहें कौर उत्तम खाने पीने के ठिकाने हैं ।
रुट मैप – सड़क मानचित्र –
दिल्ली से लखनऊ जाने की सड़क आगरा होकर जाती है ।
दिल्ली > मथुरा > आगरा > कन्नौज > लखनऊ
यमुना एक्सप्रेसवे और फिर आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे
कुल दूरी: लगभग ५३३ कि.मी.
दिल्ली से लखनऊ पहुँचने में ७ घंटे ३० मिनिट लगते हैं। गाड़ी मे लंबे सफर में गाड़ी के सभी कागजात और पर्याप्त नकद साथ रखें। आपकी गाड़ी में फास्टैग होना जरूरी है। नए मोटर व्हीकल एक्ट में अनिवार्य किया गया है ।
मैंने दिल्ली से सेल्फ ड्राइव कार किराए पर ली, ताकि गाड़ी की स्थिति अच्छी हो और कागजात पूरे हों। अगर आप अपनी कार से जा रहे हैं, तो टायर और बाकी मैकेनिकल हिस्सों की अच्छी तरह जांच कर लेनी चाहिए । लंबी यात्रा से पहले गाड़ी की सर्विस करवाना जरूरी है।
दिल्ली से आगरा रोड ट्रिप :- अब यमुना एक्सप्रेसवे की वजह से दिल्ली और आगरा के बीच की दूरी सिर्फ २१२ कि.मी. रह गई है। सुबह ६ बजे दिल्ली से निकला और १० बजे आगरा पहुँचकर वहाँ की बेड़मी पूरी और आलू कद्दू की सब्जी का नाश्ता किया, भल्ले की चाट खायी।
हाईवे पर कुछ अच्छे ढाबे थे, लेकिन भूख न होने के कारण मैंने शहर में जाकर ताजमहल देखना तय किया। ताजमहल देखे बिना आपकी आगरा यात्रा अधूरी है।
ताजमहल – प्यार का प्रतीक :- मैं ताजमहल के पश्चिमी गेट के पास “ई-रिक्शा” से टिकट काउंटर पहुँचा। रास्ते में सरकारी हस्ताशिल्प बाजार भी है, जहाँ स्थानीय कारीगरी के नमूने मिलते हैं।
टिकट काउंटर से स्मारक तक पैदल चलते हुए, कई जगह रुककर ताज की खूबसूरती निहार सकते हैं । मैं दोपहर में पहुँचा, लेकिन सोचा कि सुबह की धुंध और उगते हुए सूरज में यह नजारा देखने में अद्भुत होगा। कुछ समय बिताकर मैं आगे की यात्रा पर निकल पड़ा।
राजा सुमेर सिंह का किला – इटावा :- यमुना एक्सप्रेसवे के बाद आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे पर चलते हुए मैंने इटावा में राजा सुमेर सिंह का किला भी देखा। यह आगरा से १२४ कि.मी दूर यमुना नदी के किनारे बना हुआ है।
इस किले को “बारह द्वार किला” भी कहा जाता है। लेकिन आजतक इसका बारहवाँ दरवाजा कोई भी ढूंढ नहीं पाया। पुराना किला समय के साथ खंडहर हो गया, जिसे सरकार ने फिर से बनवाया है। यह पहाड़ी पर स्थित है, कभी इसमें गुप्त सुरंगें होने की बात कही जाती है।
कन्नौज – ऐतिहासिक महत्व का शहर :- इटावा से लगभग ११० कि. मी. दूर गंगा किनारे बसा कनौज, कभी उत्तर भारत का प्रमुख नगर था। यहाँ के सरकारी पुरातात्विक संग्रहालय में मौर्य साम्राज्य (325 ईसा पूर्व) से लेकर गुप्ता साम्राज्य (३१ ई -६०० ईसी) तक के सिक्के, मिट्टी के बर्तन, मूर्तियाँ और टेराकोटा संरक्षित हैं । यहाँ कुछ प्रागैतिहासिक हड्डियाँ भी मिली हैं ।
मैंने गंगा किनारे स्थित ५०० साल पुराने सिद्धेश्वर मंदिर का भी दौरा किया। शरद पूर्णिमा की रात यहाँ विशाल मेला लगता है।
कनौज इत्र (परफ्यूम) के लिए भी प्रसिद्ध है। लखनऊ रवाना होने से पहले मैंने यहाँ से कुछ इत्र खरीदे ताकि पूरी यात्रा की खुशबू याद रहे।
कन्नौज से लखनऊ – अंतिम पड़ाव :- कन्नौज से लखनऊ १२३ कि.मी. दूर है। सफर में आगरा का ताजमहल, राजा सुमेर सिंह का रहस्यमयी किला, और सिद्देश्वर मंदिर की शांत गंगा – तट यात्रा।
लखनऊ पहुंचकर मैंने रूमी दरवाज़ा, छोटा इमामबाड़ा,, द रेजीडेंसी, दिलकुशा कोठी, सफेद बारादरी जैसे कई ऐतिहासिक स्थलों का दौरा किया। लखनऊ की मिठाई में गिलौरी बहुत मशहूर है।
यात्रा सुझाव:- आप यदि दिल्ली से लखनऊ रोड द्वारा सफर करें तब आगरा, इटावा और कनौज जरूर देखें। हो सके तो कुछ दिन रुककर इन जगहों को अच्छी तरह घूमें या फिर डिटूर लेकर इनकी खूबसूरती का आनंद लें।
“शुभ यात्रा”